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Showing posts from July, 2020

सच्चे और कच्चे दोस्त की पहचान।

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दोस्ती इस दुनिया के सबसे खूबसूरत रिश्तों में से एक है। देखते है। दोस्तों को पहचानने का तरीका: सच्चे दोस्त की पहचान -अच्छा दोस्त सिर्फ मीठी-मीठी बातें नहीं कर सकता। अच्छे दोस्त का फर्ज है कभी-कभी कड़वा सच बोल कर अपनों को सावधान करता रहे। -एक सच्चा दोस्त वह होता है, जो आपकी तमाम कमज़ोरियां जानने के बावजूद कभी भी गुस्से में आकर उसे जताकर आपको शर्मिंदा न करे। -सच्चा दोस्त तब भी आपका दर्द समझ जाता है, जब आप दुनिया को यह दिखाने की कोशिश कर रहे होते हैं कि सबकुछ ठीकठाक है। -सच्चा दोस्त गलती करने पर फौरन सलाह देता है और आपके पीछे हमेशा आपका बचाव करता है। -सच्चे दोस्त की पहचान संकट के वक्त के साथ दोस्त के अच्छे वक्त में भी होती है। जो अपने दोस्त की सफलता को एंजॉय कर सके, वही सच्चा दोस्त है। कई बार संकट में दो लोग अच्छे दोस्त नजर आते हैं लेकिन एक की सफलता दूसरे को उससे दूर कर देती है। -जरूरी नहीं किअच्छे दोस्त की चॉइस और सोचने का तरीका आपसे मिलता जुलता हो। इतना सबके बाद वह आपको अच्छी तरह से समझता है। दोनों दोस्त जानते हैं कि वो एक-दूसरे को बदल नहीं सकते और न ही ऐसा करने की कोशिश करते...

जिंदगी जिंदाबाद

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ज़िन्दगी से प्यार करना ज़िन्दगी को जीना ही है। ज़िन्दगी से रुठना ज़िन्दगी को दुख पहुंचाना है। यह एहसास कि हम यहां जितना खुशियां बांट सकें हमें ज़िन्दगी को जीने की असली वजह देगा। क्यों न हम जिंदगी को जीना शुरू करें ताकि हमारी बोझिल लगने वाली सोच में बदलाव आ सके और एक नया हौंसला मिल सके जीने का। खामोशी से विचार कर खुद से मिला जा सकता है, खुद को जाना जा सकता है। जो की एक सुखद एहसास है। भावनाओं को खुद से लिपट जाने दो और एहसास कराओ खुद को कि ज़िन्दगी वाकई बेहद खूबसूरत है...

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

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पर उपदेश कुशल बहुतेरे । महान रचनाकार ही ऐसी कृतियों का सृजन करते हैं जो कालजयी होने के साथ-साथ उनकी मौलिक प्रतिभा का निदर्शन कराते हैं। ऐसी रचनाओं में वे ऐसे मूल्यों को प्रकट करते हैं जो शाश्वत होने के साथ-साथ मानव के लिए पथ-प्रदर्शक का कार्य करता है। महाकवि तुलसीदास एक ऐसे ही रचनाकार हैं। उनके द्वारा रचित रामचरितमानस में ऐसी अनेक सूक्तियां भरी पड़ी हैं, जो मानव जीवन को प्रेरणा देने वाली और उचित दिशा दिखाने वाली हैं। इसी प्रकार की एक सूक्ति है:- “पर उपदेश कुशल बहुतेरे।” प्रस्तुत सूक्ति का प्रयोग तुलसीदास ने मेघनाद वध के बाद किया था। मेघनाद के वध का समाचार सुनकर रावण मूर्छित हो जाता है परंतु जब मंदोदरी आदि सभी स्त्रियां विलाप करने लगती हैं तो रावण उन सबको ज्ञान का उपदेश देकर सांत्वना देने की कोशिश करता है। रावण उन्हें जगत की नश्वरता का उपदेश देकर समझाने का प्रयत्न करता है। इसी पर तुलसीदास ने इस उक्ति का कथन किया है तिन्हहिं ग्यान उपदेसा रावन, आपुन मंद कथा सुभ पावन। पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे अचरहिं ते नर न घनेरे।। अभिप्राय यह है कि दूसरों को उपदेश देने में तो लोग बहुत कुशल हो...