लिट्टी-चोखा
लिट्टी-चोखा।।
यह बिहार का व्यंजन है और बिहारी पहचान वाले इस व्यंजन को लोग बड़े चाव से खाते हैं. यहां के लोगों ने इसे दूसरे राज्यों व देशों में भी फैलाया है।
आज लिट्टी चोखा के स्टॉल हर शहर में दिख जाते हैं. लिट्टी चोखा खाने में स्वादिष्ट तो होता ही है, ये सेहत के लिए भी काफी फायेदमंद होता है।
गेहूं के आटे में चना सत्तू ,अदरक, लहसुन, अजवाइन, काला जीरा, नींबू, आदि को भरकर इसे आग पर पकाया जाता है. फिर देसी घी में डुबोकर इसे खाया जाता है. जिन्हें कैलोरी की फिक्र है, वो बिना घी में डुबोये लिट्टी का स्वाद ले सकते हैं. तला-भुना नहीं होने की वजह से ये सेहत के लिए अच्छा है. इसे ज्यादातर बैंगन,आलू , टमाटर के चोखे ,चटनी के साथ खाया जाता है. बैंगन को आग में पकाकर उसमें टमाटर, मिर्च और मसाले को डालकर चोखा तैयार किया जाता है।
इसका इतिहास मगध काल से जुड़ा है. कहा जाता है कि मगध साम्राज्य के दौरान लिट्टी चोखा प्रचलन में आया. बाद में ये मगध साम्राज्य से देश के दूसरे हिस्सों में भी फैला. मगध बहुत बड़ा साम्राज्य था. इसकी राजधानी पाटलीपुत्र हुआ करती थी, जिसे आज बिहार की राजधानी पटना के तौर पर जाना जाता है.
ग्रीक यात्री मेगास्थनीज जब 302 ईसापूर्व में पाटलीपुत्र आया था, तो वो वहां की भव्यता देखकर हैरान रह गया था. मेगास्थनीज ने लिखा था कि इस भव्य शहर में 64 गेट, 570 टावर और कई बाग-बगीचे हैं. यहां महलों और मंदिरों की भरमार है. मेगास्थनीज ने लिखा था- मैंने पूरब के एक भव्य शहर को देखा है. मैंने पर्सियन महलों को भी देखा है. लेकिन ये शहर दुनिया का सबसे विशाल शहर है. मगध साम्राज्य के उसी बेहतरीन दौर में लिट्टी चोखा सबसे पहली बार अस्तित्व में आया।
मुगल काल में बदल गया लिट्टी चोखा का स्वाद
लिट्टी-चोखा का जिक्र मुगल काल में भी मिलता है. लेकिन इस दौर में इसका स्वाद बदल गया. मुगल काल में मांसाहार ज्यादा प्रचलित था. इस दौर में लिट्टी के साथ शोरबा और पाया खाने का प्रचलन शुरू हुआ. इसी तरह ब्रिटिश शासन के दौरान भी इसमें तब्दिली आई और अंग्रेजों ने अपनी पसंदीदा करी के साथ लिट्टी का स्वाद लिया. जैसे-जैसे वक्त बदलता गया, लिट्टी चोखा को लेकर नए-नए प्रयोग भी होते गए।
स्वतंत्रता आंदोलन में सेनानियों के लिए बनाया जाता था लिट्टी चोखा और इसलिए लिट्टी चोखा को युद्ध का खाना भी कहा जाता है. प्राचीन काल से युद्ध के दौरान सैनिक खाने के सामान के तौर पर लिट्टी लेकर चलते थे. लिट्टी की खासियत है कि ये जल्दी खराब नहीं होता. इसे बनाना भी आसान है और ये काफी पौष्टिक भी होता है.
1857 के विद्रोह में सैनिकों के लिट्टी चोखा खाने का जिक्र मिलता है. तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई ने इसे अपने सैनिकों के खाने के तौर पर चुना था. इसे फूड फॉर सरवाइवल कहा गया. उस दौर में ये अपनी खासियत की वजह से युद्धभूमि प्रचलन में आया. इसे बनाने के लिए अधिक तामझाम की जरूरत नहीं है, इसमें पानी भी कम लगता है और ये सुपाच्य और पौष्टिक भी है. सैनिकों को इससे लड़ने की ताकत मिलती थी।ये जल्दी खराब भी नहीं होता. एक बार बना लेने के बाद इसे दो-तीन दिन तक आराम से खाया जा सकता है।
अतः आप भी इस जाड़े में इसका आनंद लें।
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